भगत मुंशीराम |
कबीर साहिब ने लिखा हैः-
काम काम सब कोई कहे, काम न चीन्हे कोय।
जेती मन की कल्पना, काम कहावे सोय ।।
अहंकार और कामना को ही नर-नारी कहा गया है. मन में अपने अहंकार की वजह से कामना या इच्छा का उठना ही नारी करना है. कबीर साहिब ने इसी लिए यह भी कहा:-
नारी तो हम भी करी, जाना नहीं विचार।
जब जाना तब परिहरी, नारी बड़ी विकार ।।
इसका अर्थ यह है कि मेरे मन में कामना उठी थी, यह न जान सका कि यह कोई विचार है या ख्याल है. जब समझ आई तब इस कामना रूपी नारी को छोड़ा, यह तो बड़े विकार पैदा करती है.
तो सन्तों ने इच्छा को ही नारी कहा है, यही इच्छा आगे स्थूल रूप में नर और नारी पैदा करती है. नर से अहंकार की वजह से कुछ लिया जा सकता है और नारी में नर से शक्ति ग्रहण कर के अपने गर्भ में रख कर सृष्टिक्रम को चलाने के लिए नर-नारी पैदा करने की शक्तियाँ दीं.
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